Thursday, June 5
अनंत सागर है यह
कोई सीमा, कोई दर नहीं
बस डूब जाओ इसमें
कह दो सारी बातें मन की
कागज़ को - कलम को - रंगों को
बना लो मसीहा
तैरो निडर -----
बहने दो जो बहता जाए
फिर देखो ----
कैसे कल्पना आंखें खोलेगी
उठेगी ---- चलेगी ----
खेलेगी तुम्हारे साथ
--- तुमसे परे ----
भीतर भी तुम्हारे ---
इर्द गिर्द ----- सर्वत्र
तुम ही तुम होगी मेरी अंकु.... ।।।
Tuesday, June 3
ज़िंदगी क्यों बेबाक बेखौफ चली जाती है
इतने हादसों से कुछ तो सीखा होता...
दिल है के टूट के बिखरा पड़ा है रस्तों पर
न जाने इस पर क्या क्या नहीं बीता होगा...
अश्क आंखों में कुछ ठहर ठहर गए से हैं
होंठ भी अधखुले से, बिलबिलाये, सुर्ख huye
अन्दर एक टीस सी सिमट के रह गयी जैसे
इक दफा दिल लगा के ज़ोर से चीखा होता
इतने हादसों से कुछ to सीखा होता
अरे कुछ to दिखा असर जो तुझपर हुआ है
यह जो आंखों में दिख रहा है, असल में हुआ है
न मुस्कुरा ऐ बुत - झूठा तू - संगेमरमर का सही
हाय! पत्थर पे कोई नाम और लिखा होता
न जाने इस पर क्या क्या नहीं बीता होगा...
ज़िंदगी क्यों बेबाक बेखऑफ चली जाती है...!!!
Sunday, June 1
फिर वही रस्ते हैं
वही गलियाँ
वही मकान
- बस तुम नहीं
ज़िंदगी वही है
वही दिन- वही रात
- बस तुम नहीं
वही फ़ोन की घंटी है
वही एहसास, के तुम होगे
-पर तुम नहीं
वही खयालात ... आगे की बात
वही उलझनें
- बस तुम नहीं
वही यादें, वही रुसवाई
वही थकान
- बस तुम नहीं
वही फासले वही मुश्किलें
वही जज्बात
- बस तुम नहीं
वही सुबह... वही शाम
आंखों में उम्मीद
- बस तुम नहीं
क्या बदला, कुछ भी नहीं
सब वही है - बस तुम नहीं
वही ज़िंदगी... वही रफ़्तार
बस तुम नहीं...
वही तुम हो - वही मैं
बस मैं मैं नहीं - तुम तुम नहीं..