Thursday, June 5

अनंत सागर है यह

कोई सीमा, कोई दर नहीं

बस डूब जाओ इसमें

कह दो सारी बातें मन की

कागज़ को - कलम को - रंगों को

बना लो मसीहा

तैरो निडर -----

बहने दो जो बहता जाए

फिर देखो ----

कैसे कल्पना आंखें खोलेगी

उठेगी ---- चलेगी ----

खेलेगी तुम्हारे साथ

--- तुमसे परे ----

भीतर भी तुम्हारे ---

इर्द गिर्द ----- सर्वत्र

तुम ही तुम होगी मेरी अंकु.... ।।।

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