अनंत सागर है यह
कोई सीमा, कोई दर नहीं
बस डूब जाओ इसमें
कह दो सारी बातें मन की
कागज़ को - कलम को - रंगों को
बना लो मसीहा
तैरो निडर -----
बहने दो जो बहता जाए
फिर देखो ----
कैसे कल्पना आंखें खोलेगी
उठेगी ---- चलेगी ----
खेलेगी तुम्हारे साथ
--- तुमसे परे ----
भीतर भी तुम्हारे ---
इर्द गिर्द ----- सर्वत्र
तुम ही तुम होगी मेरी अंकु.... ।।।
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