Saturday, December 17

गुज़रे कल को मुट्ठी से गिर जाने दो रेत की तरह...
रेत ही तो है...
वरना मकाँ न बने होते...??  

महक उठती हूँ फ़कत नाम से तुम्हारे...
जो छू लिया तुमने तो खुशबू हो जाऊँगी !!