Saturday, April 25

नोच रहे हैं ख़याल----
चबा रही हैं यादें
मैं घसीट रही हूँ ख़ुद को
जाने किस ओर जाना है
सन्नाटा है चारों ओर
गहरा अँधेरा
बेचैनी है --- घबराहट है
एक कोशिश है
किस बात की... पता नहीं
हर साँस बेमानी
हर बात बेमतलब
बेजान--- बेसोज़-- बेहोश---
चली जा रही हूँ
बस दिखती है हर ओर
उम्मीद से भरी आँखें॥
मुझ से अब भी बाकी हैं उम्मीदें...
मुझसे??
मैं हूँ ही कहाँ अब??
बची भी हूँ क्या???
दिखायी भी देती हूँ???
...शायद...
पर कहाँ?? मुझे भी दिखाओ
आईने में कोई नहीं दिखता मुझे
कहाँ खोयी हूँ??? तुम्हें पता है...???
मुझे भी बताओ...!

इन नोचते ख्यालों को खींच लो मुझ पर से
बचा लो!!!
जीना चाहती हूँ मैं
कुछ लम्हे मेरी यादों में
भर दो न अपने
जीना चाहती हूँ मैं!!!