Monday, November 21

इस कदर ख़ुशनुमा हुई  है सहर आज की...
कानों में ज़िक्र आपका, जुबां पे महक रात की...
तमाम ज़िन्दगी कर देंगे हक़ आपके हम...
जो इस दिल पे बस रहे यूँ महर आपकी...!!!

होठों पे तबस्सुम है ये, के बर्क-ए-बला है...
आँखों का इशारा है के, सैलाब-ए-फना है...

ताज्जुब में निकलेगा दिन आज का...
हैरान परेशानियों को छुट्टी दी है आज...!!!

इतने दिनों के बाद आया है तू..
और उजला हुआ कुरबत का चाँद...
और गहरा हुआ तेरा फुसुं...
सोचती हूँ झुका के अपनी नज़र...
अब तुझे दूर से कैसे मिलूँ...???