Monday, March 30

लब्जों से खाली इस दिल ने

इक सदा दी है...

मिरे एहसास को जुबां मिल जाए

खुदाओं से ये दुआ की है॥

सूनी राहें थीं अब तक…
अब उससे भी सूनी आँखें हैं..
एक सपने का सहारा था...
अब वो भी नहीं दिखता..

यादों के धुंधले ढेर में ढूंढती हूँ…
कोई तो याद मिले ऐसी, के जी भर जाए..
सब खाली मंज़र हैं..
कुछ खोखले वादे...
चाट के किनारे ख़्वाबों के...
अब जी नहीं भरता...

इस उम्मीदों के मरघट में...
अब डर भी नहीं लगता मुझे..
एक आस के सहारे बैठी थी कुछ क्षण...
वो भी मर गयी शायद..
कल उसका जनाज़ा देखा था…
अब वो भी नहीं दिखता…

यूँ ही चलती जा रही हूँ…
या खड़ी हूँ वहीँ शायद...
परछाईयाँ घूम रहीं हैं...
या घूम रही हूँ मैं शायद...
कभी चेहरा दिखता था उन में…
अब वो भी नहीं दिखता …
अब ज़िन्दगी है.. गर जिंदगी कहते हैं इससे…
फिर वही तन्हाई..
जिसका कभी मुझे डर था॥