Saturday, November 8

मैं सब समझती हूँ
पर इसे कैसे समझाऊं...
ये जो रूठ के बैठा है मुझसे
-- दिल मेरा---
इसे कैसे मनाऊं...???
रोता है-- बिलखता है...
जीने नहीं देता मुझे
हर धड़कन पे तेरा नाम
हर बात पे तेरी याद
--- चाय तक भी चैन से
पीने नहीं देता मुझे
कहता है तुझे ला दूँ
किधर से भी-- कैसे भी
इसे बस तू ही चाहिए
जिधर से भी-- जैसे भी
मैंने कहा दिल से-- मुमकिन नहीं ये
पर नामुराद मानता ही नहीं
यूँ मुह फेरे बैठा है मुझसे
जैसे पहचानता ही नहीं
बस तुम ही तुम हो--
मैं कहीं नहीं
अब इस दिल के ख्यालों में
उलझती ही जा रही हूँ मैं
इस बे-लगाम के सवालों में
अब तुम ही कुछ करो
आ जाओ इस पागल के लिए
तुम्हे इस दिल से लगा लूँ मैं
बस पल दो पल के लिए
उसी खुशबू में डुबो दूँ इसे
महसूस कर ले ये तुम्हे
चैन मिल जाएगा इसे
इक बार छु ले ये तुम्हे
फिर चले जाना
इसे मैं samajha dungi
तुम बिन कैसे जीना है
इसको भी bataa dungi
बस एक बार चले aao
baawaraa रास्ता taktaa है तेरा
इक पल के लिए ही आ जाओ
दिल नहीं लगता है मेरा...!!!

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

ek yaad,ek sparsh,aur dil ki bechainee ....aankhon ke aage koi aa jata hai aur kahta hai'main kahan jaunga,tumne jaane hi kab diya,dil tumhara aur tum- main jaa hi nahi sakta'

!!अक्षय-मन!! said...

BAHUT SUNDAR.......
HOTA HAI KABHI KABHI AISA BHI HOTA HAI..........
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/

vijay kumar sappatti said...

बहुत अच्छी पंक्तियाँ ..
अच्छे अहसास ...
लम्हों की तस्वीर..

बधाई

विजय
www.poemsofvijay.blogspot.com

Anonymous said...

bahut khoobsurat...