Tuesday, August 26

अपनी ही नज़र से डर लग रहा है।
दिल में ये बातें रूकती नहीं हैं।
किसी और से भी ये कहना नहीं है।
फूंक के रखूं हर अपना कदम, लग रहा है।
ख़ुद अपनी नज़र से डर लग रहा है॥
पिघलने लगी है हँसी आंखों में अब।
खुशी ही खुशी है मेरी बातों में अब।
बटी हैं ये सांसें सौगातों में अब।
मुस्काती मिलेगी हर सहर, लग रहा है।
ख़ुद अपनी नज़र से ही डर लग रहा है॥

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

जब आती हैं बहारें
तो डर लगता है,
तोड़ लो तिनका ,नज़र ना लगे
और झूम के ज़िन्दगी का स्वागत करो

Khush... said...

Touchwood....