Monday, August 25

गीली मिट्टी से पनपी खुशबू में
इक जो साया लिपटा चला आता था--
बरसों सता कर... आज जा कर
उसने तिरा नाम लिया।
अपनी ज़हे- नसीबी पे फिर
हमने ये दिल थाम लिया॥

ग़श खाया-- ज़रा लहराया
दिल इठलाया इठलाया सा है
माशा-अल्लाह!! नज़रों से बचे...
खुशनुमा शरमाया सा है।

रु-ब-रु तू... तिरा चेहरा
तेरे एहसास भरा जाम पिया
तिरे लब्जों में लपेटा ख़ुद को
हमने ये दिल थाम लिया ॥

सुकूं आया है अब जा कर
बरसों राह पे बिठा कर
... इंतज़ार में, ख़याल बुनती मैं...
तूने खूब इम्तिहान लिया--
अब जो आ के
चूमी है पेशानी मेरी
हमने ये दिल थाम लिया...
हमने ये दिल थाम लिया॥







1 comment:

Khush... said...

gulzar meri....do i need to say tht tum tooooooo good likhti...