Tuesday, July 1

होगा सबब क्या...
वो जो ठहरा हुआ है आँगन में...
घर के दायरों में मिरे
कोई मैकदा भी नहीं...
दरो को खोल दूँ...
आने दूँ उसको महफिल में...
इज्तियार-ऐ-दिल तो है...
पर इतना मेहरबान भी नहीं...
दस्तक शुरू हुई है दिल पे अभी
रह रह के
aaghaaz है मगर
ye पूरी दास्ताँ भी नहीं...




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